Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

खिलोना

 

हे महाभारत के दुर्भाग्य वीर
बन गये तुम एक खिलोना
तुमसे खिलवाया खेल सब अपना-अपना
कोई तुम्हें कुछ नहीं माना
बन गये तुम एक खिलोना।

 

स्वार्थ के खातिर अपनाया
अनीति समझकर दूर किया।
क्या योग्य जो किया?
दूसरों ने समझा तुम्हें अपना
बन गये तुम एक खिलोना।

 

यौवन में वर्ज बन गये
धैर्य, शौर्य से वीर कहलाये।
छल राजा के सेवक बन गये
अपनों को ही शत्रु माना
बन गये तुम एक खिलोना।

 

फिर हुआ तुम्हें दोखा
कंटक बने अपने भाईयों का।
रक्षा की तुमने अपनी माँ का
कोई तुम्हें कुछ नहीं माना
बन गये तुम एक खिलोना।

 

प्रो.संगमेश ब.नानन्नवर

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ