Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बस्ती अपनी जलाकर आया हूँ

 

बस्ती अपनी जलाकर आया हूँ
पागल हूँ,सबको बताकर आया हूँ

 

रिश्ते बनाने में बीत जाती है मुद्दतें
मैं सारे रिश्ते दफनाकर आया हूँ

 

पुराने रिश्तों की राख ठंढी हुई नहीं अभी
नए रिश्तों की होली मनाकर आया हूँ

 

तेरे ठुकराने का अब कोई ग़म नहीं
मैं ख़ुद को ख़ुदी से गिराकर आया हूँ

 

कोई शम्मां नहीं चाहिए तीरगी-ए-दिल को
एक चिराग था उसको बुझाकर आया हूँ

 

खुशियां मन रही थी मेरी मौत पर वहाँ
अभी उस गली से मैं जाकर आया हूँ

 

मुक़र्रर कर दे मेरी मौत का दिन कोई
मैं क़ब्र अपनी आज बनाकर आया हूँ

 

'प्रतीक' रो लेने दे मुझे आज जी भर कर
किसी अपने को अभी रुलाकर आया हूँ

 

 

by:- PURUSHOTTAM PRATIK 'BAWRA'............

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