Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पत्थर भी पिघल जाते हैं ज़माने में

 

पत्थर भी पिघल जाते हैं ज़माने में
पत्थर हो गया मैं तुझे मनाने में

 

तेरे बिना अब जी नहीं लगता कहीं
क्या मज़ा है यार मुझे सताने में

 

तअल्लुक़ तोड़ते तुझे तरस न आयी
मुदद्तें लग जाती है रिश्ते बनाने में

 

तुम अपनी तरफ से कोई तअल्लुक़ न रखो
मैं क़सर न छोडूंगा रिश्ता निभाने में

 

अपनी डोली के फूल बचाकर रखना
काम आयेंगे मेरी ताबूत सजाने में

 

मेरे दर्द को ’ प्रतीक’ दिखावा न समझ
मर जाते हैं कई लोग दिखाने में

 

 

BY:- PURUSHOTTAM PRATIK 'BAWRA'......

 

 

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