Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

Purushottam Pratik Bawra

 
  • मेरी सिसकियों की आह से दिल फरिश्तों का दहल गया होगा
    हवाओं में आ गयी होगी नमी पत्थर भी पिघल गया होगा

    रह रह कर गुम हुई जाती थी वीरानियों में घुंघरुओं की सदाएं
    दश्ते – वीरां में आज फिर कोई दीवाना मचल गया होगा

     

  • अँधेरा ही अँधेरे में रौशनी देगा
    ये चाँद कल और कहीं चांदनी देगा

    ख़ुश्क़ लबों की जुंबिश मांगती है साग़र
    साक़ी तेरा बोसः और भी तिश्नगी देगा

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ