मेरी सिसकियों की आह से दिल फरिश्तों का दहल गया होगा
हवाओं में आ गयी होगी नमी पत्थर भी पिघल गया होगारह रह कर गुम हुई जाती थी वीरानियों में घुंघरुओं की सदाएं
दश्ते – वीरां में आज फिर कोई दीवाना मचल गया होगाअँधेरा ही अँधेरे में रौशनी देगा
ये चाँद कल और कहीं चांदनी देगाख़ुश्क़ लबों की जुंबिश मांगती है साग़र
साक़ी तेरा बोसः और भी तिश्नगी देगा
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