अंहकार और मुर्खता एक दूसरे के पर्याय होते हैं.....मूर्खों को तो अपने अंहकार का पता ही नहीं होता....इसलिए उनका अहंकारी होना लाजिमी हो सकता है मगर...अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति भी अहंकारी है तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं....!!
जिस भी किस्म लडाई हम अपने चारों तरफ़ देखते हैं....उसमें हर जगह अपने किसी न किसी प्रकार के मत...वाद....या प्रचार के परचम को ऊँचा रखने का अंहकार होता है.....इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति...समूह....धर्मावलम्बी....राष्ट्र...यहाँ तक कि किसी भी भांति का कोई भी आध्यात्मिक संगठन तक भी एक किस्म के अंहकार से अछूता नहीं पाया जाता......यही कारण है कि धरती पर शान्ति स्थापित करने के तमाम प्रयास भी इन्हीं अहंकारों की बलिवेदी पर कुर्बान हो जाते हैं.....प्रत्येक मनुष्य को ख़ुद को श्रेष्ठ समझने की एक ऐसी भावना इस जग में व्याप्त है कि ये किसी अन्य को ख़ुद से ऊँचा समझने ही नहीं देती...........और यही मनुष्य यदि किसी भी प्रकार के समूह से सनद्द हो जाए तो उसके अंहकार की बात ही क्या....फ़िर तो उसे और भी बड़े पर लग जाते हैं....तभी तो हम यहाँ तक देखते हैं कि शान्ति की तलाश में किसी गुरु की शरण में गया व्यक्ति भी अपने गुरु को उंचा या महान साबित करने की चेष्टा करता बाकी के गुरुओं को छोटा या हेय तक बता डालता है.....और यहाँ तक कि गुरु भी यही कर्म करने में ख़ुद को रत रखता है....!!
हमारे जीवन में हमारे छोटे-छोटे अंहकार हमारे जीवन के बहुत सारे समय को खोटा कर देते हैं.....और हम सदा दूसरे को कोसते अपना समय नष्ट करते जाते हैं.....बहुत साड़ी परिस्थितियों में बेशक यह सच भी हो दूसरा ही दोषी हो....मगर इससे हमारा अहंकारी होना तो नहीं खारिज होता ना......नहीं होता ना....!!..........मैंने देखा है कि थोड़ा-सा झुक-कर या सामने वाले की बात को ज़रा सा मान कर....या उसे ज़रा सा घुमाव देने के लिए मना कर बहुत सारे झगडे पल भर में समाप्त किए जा सकते हैं....मगर हर हालत में यह संभावना सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम में ही व्याप्त है.....और मजा यह कि अंहकार के वक्त हममें प्रेम होता ही नहीं.....या फ़िर होता भी है तो वह कुछ समय के छिप जाता है....मगर एक बार हमारे मुहं से ग़लत-सलत बात के निकल जाने के पश्चात वाही अंहकार हममें ऐसी जड़ें जमाता है कि हम फ़िर अपने वक्तव्य से पीछे हटने को राजी ही नहीं होते....और जिन्दगी के तमाम झगडे सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी वजह से जिन्दगी भर कायम रह जाते हैं.....कोई भी पक्ष किसी भी किस्म के राजी नामे की ना तो पहल करता है....और ना ही सामने वाले की पहल उचित सम्मान देकर उसका स्वागत करता है....या अपनी और से प्रतिक्रिया स्वरुप कोई कदम बढाता है....तमाम झगडों के बाद सामने वाले के प्रति हमारे मन में इक शाश्वत धिक्कार का भाव पैदा हो जाता है....जो हममे से विदा होने का नाम ही नहीं लेता..........सच तो यह है कि इसी वजह से हम सबने अपने जीवन को नर्क बना लिया होता है.....!!
अंहकार और मुर्खता एक दूसरे के पर्याय होते हैं.....मूर्खों को तो अपने अंहकार का पता ही नहीं होता....इसलिए उनका अहंकारी होना लाजिमी हो सकता है मगर...अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति भी अहंकारी है तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं....!!इसलिए दोस्तों इस वक्त.........बल्कि तमाम वक्त समस्त पृथ्वी वासियों को हमें प्रेम का संदेश फैलाने की जरुरत है..........मगर उससे पूर्व ख़ुद को प्रेममय बना लेने की जरुरत है.........बदला एक किस्म की राक्षसी भावना है.....इसका इसी वक्त तिरस्कार कर हमें सदा के लिए अपने मन को प्रेम की चुनर पहना देनी होगी.........यदि सचमुच ख़ुद से.....हरेक से....संसार से....या प्राणिमात्र से तनिक भी प्रेम करते हैं.....तो यह काम अभी और इसी वक्त से शुरू हो जाना चाहिए....!!आप सबको भूतनाथ का अविकल प्रेम.....!!
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