आज मेरे हाथ में कुछ ख़त पुराने लग गए
आँख में जितने भी आंसू थे ठिकाने लग गए |
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जो कभी दिल में बसे अब दिल जलाने लग गए
बस यही गम था कि हम पीने पिलाने लग गए |
आदमी की फितरतों का क्या भरोसा है जनाब
बस्तियों के लोग ही बस्ती जलाने लग गए |
आपने जिनको चुना था रहनुमाई के लिए
किसलिए भेजा मगर करतब दिखाने लग गए |
बांटने में क्यूं लगी है ये सियासत देश को
देखिये कुछ लोग कातिल को बचाने लग गए|
कल अचानक राह में टकरा गए थे वो मगर
बात करना दूर वो नज़रें चुराने लग गए |
बस यही कुछ बरस पहले खो गया था दिल मेरा
ढूंढते ही ढूंढते अब तो ज़माने लग गए |
पूछ बैठे वो अचानक कल कहाँ थे "आरसी"
आदतन हम मुस्कुराए और जाने लग गए |
----आर० सी० शर्मा “आरसी”
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