Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आओ फ़िर गांधी को ढूंढें…………..

 

 

एक चिंगारी खोज रहा हूं राख हुए अवशेष में,
आओ फ़िर गांधी को ढूंढें गांधी जी के देश में।

 

सत्य अहिंसा अस्त्र वही, पर धूल खा रहे वादी में,
चोर -उचक्के नगर सेठ बन लकदक घूमें खादी में।
मत लेकर उन्मत्त हुए जो तुमको क्या पहचानेंगे,
राम राज्य का सपना है अब परिवर्तित बर्बादी में।

 

जीना तक दुश्वार हो गया अब तो इस परिवेश में,
आओ फ़िर गांधी को ढूंढें गांधी जी के देश में।

 

हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्ज़िद कैसी अजब लडाई है,
राज पथों पर फ़िसलन देखी, घाट-घाट पर काई है।
अब गांधी नोटों पर दिखते या ढल जाते सिक्कों में,
गांधी-गीरी के धंधों में ऊंची बहुत कमाई है।

 

कौरव, पाण्डव उलझ रहे सब द्रुपदसुता के केश में,
आओ फ़िर गांधी को ढूंढें गांधी जी के देश में।

 

किसको फ़ुर्सत राज घाट पर जा कर तुमको नमन करे,
कौन गिरेबां झांके अपना कौन तुम्हारा मनन करे।
खेल-खेल में लूट-मार है, लूट मार अब खेल हुआ,
राज-पथों के हठयोगी भी बिन पैसा नहीं भजन करें।

 

बापू अब नहीं तेरे बंदर तेरे ही आदेश में,
आओ फ़िर गांधी को ढूंढें गांधी जी के देश में।

 

 

 

आर० सी० शर्मा “आरसी”

 

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ