अपनी ही सरहद में थे ,
लेकिन शक की ज़द में थे|
सीमाएं तुमनें तोड़ी थीं .
हम तो फिर भी हद में थे |
हम अपनी मस्ती की धुन में,
वो जाने किस मद में थे |
वो पंछी सब कूच कर गए ,
जिनके घर बरगद में थे |
कुछ कौए परिधान बदल कर,
हंसों की संसद में थे |
-आर० सी० शर्मा “आरसी”
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