Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अपनी ही सरहद में थे

 

अपनी ही सरहद में थे ,
लेकिन शक की ज़द में थे|

 

सीमाएं तुमनें तोड़ी थीं .
हम तो फिर भी हद में थे |

 

हम अपनी मस्ती की धुन में,
वो जाने किस मद में थे |

 

वो पंछी सब कूच कर गए ,
जिनके घर बरगद में थे |

 

कुछ कौए परिधान बदल कर,
हंसों की संसद में थे |

 

 

 

-आर० सी० शर्मा “आरसी”

 

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