भरम ये परत दर परत खोलता है
मगर आइना सच सदा बोलता है |
तुम्हारे लिए कुल जहां बोलता है
हमारे लिए वो कहाँ बोलता है |
सियासत मुहब्बत पनपने न देती
यहाँ से वहां हर बशर बोलता है|
खुदा ने गज़ब का दिया हुस्न तुमको
गज़ल में हमारा हुनर बोलता है |
परेशान हो तुम बिछड़ कर जियादा
यही बात सारा शहर बोलता है |
परिंदे बिचारे परेशान होंगे
कुल्हाड़ी लगी तो शज़र बोलता है |
तुम्हारी नज़र का इशारा मिला तो
कहाँ बस में अपना जिगर बोलता है|
हमारी तुम्हारी थकन की कहानी
हमारा तुम्हारा सफ़र बोलता है |
चलो रात ढलने चली "आरसी" अब
सुबह हो रही है गज़र बोलता है |
-- आर० सी० शर्मा “आरसी “
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY