Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भरम ये परत दर परत खोलता है

 

भरम ये परत दर परत खोलता है
मगर आइना सच सदा बोलता है |

 

तुम्हारे लिए कुल जहां बोलता है
हमारे लिए वो कहाँ बोलता है |

 

सियासत मुहब्बत पनपने न देती
यहाँ से वहां हर बशर बोलता है|

 

खुदा ने गज़ब का दिया हुस्न तुमको
गज़ल में हमारा हुनर बोलता है |

 

परेशान हो तुम बिछड़ कर जियादा
यही बात सारा शहर बोलता है |

 

परिंदे बिचारे परेशान होंगे
कुल्हाड़ी लगी तो शज़र बोलता है |

 

तुम्हारी नज़र का इशारा मिला तो
कहाँ बस में अपना जिगर बोलता है|

 

हमारी तुम्हारी थकन की कहानी
हमारा तुम्हारा सफ़र बोलता है |

 

चलो रात ढलने चली "आरसी" अब
सुबह हो रही है गज़र बोलता है |

 

 

-- आर० सी० शर्मा “आरसी “

 

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