Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

देखा महादेवी, दिनकर को और पंत, निराला देखा है

 

देखा महादेवी, दिनकर को और पंत, निराला देखा है,
हमने मंदी के दौर सहे और कभी उछाला देखा है,
क्या युग था कवि का, कविता का था शब्दों का सम्मान बढ़ा,
अब तो मंचों पर कविता का, पिटते दीवाला देखा है ।

हमने नीरज के हाथों में, देखा है गीतों का प्याला,
भर-भर कर जाम पिलाई थी, दुष्यन्त ने ग़ज़लों की हाला।
थी कैसी अनबुझ प्यास पिओ उतनी ही बढ़ती जाती थी
हमने बच्चन को कन्धों पर ढोते मधुशाला देखा है ।

रसखानी छंदों में डूबा पूरा ब्रज, डूबी ब्रजबाला,
मीरा ने अपने भजनों में गाया था गिरधर गोपाला,
नानक, तुलसी, कबीरा, दादू क्या इनका कोई सानी था,
खुद सूरदास की आँखों से हमने नन्दलाला देखा है ।

वो दिन भी आयेगा फिर से, जब मान बढ़ेगा हिन्दी का,
भारत माता के शीश मुकुट पर चाँद चढ़ेगा हिन्दी का,
सब इक इक दीप जलाएंगे तो अन्धकार मिट जाएगा,
हमने तो स्याह सुरंगों के उस पार उजाला देखा है ।

-आर० सी० शर्मा “आरसी”

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ