Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ढूंढा किया मैं अक्सर परछाइयों में तुझको

 

 

ढूंढा किया मैं अक्सर परछाइयों में तुझको।
खोजा न अपने मन की अमराइयों में तुझको॥

 

कालिंदी कूल रज में, कभी मंदिरों के ध्वज में;
पर अपने साथ पाया तन्हाइयों में तुझको॥

 

तू बाँसुरी की धुन में, घुंघरू की रुनकझुन में;
मन बावरा सा ढूंढे शहनाइयों में तुझको॥

 

 

--आरसी

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