ढूंढा किया मैं अक्सर परछाइयों में तुझको।
खोजा न अपने मन की अमराइयों में तुझको॥
कालिंदी कूल रज में, कभी मंदिरों के ध्वज में;
पर अपने साथ पाया तन्हाइयों में तुझको॥
तू बाँसुरी की धुन में, घुंघरू की रुनकझुन में;
मन बावरा सा ढूंढे शहनाइयों में तुझको॥
--आरसी
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