एक बिटिया हो जैसे निर्धन की ,
पीर दिन-दिन जवान होती है|
दर्द से जंग में यहाँ हर पल,
ज़िंदगी लहू लुहान होती है|
सब्र का हद से गुज़र जाना ही,
आसुओं की जुबां होती है|
"आरसी" गम की आंच से गुज़री,
हर घड़ी इम्तिहान होती है| --आरसी
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एक बिटिया हो जैसे निर्धन की ,
पीर दिन-दिन जवान होती है|
दर्द से जंग में यहाँ हर पल,
ज़िंदगी लहू लुहान होती है|
सब्र का हद से गुज़र जाना ही,
आसुओं की जुबां होती है|
"आरसी" गम की आंच से गुज़री,
हर घड़ी इम्तिहान होती है| --आरसी
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