क्या संवेदना मौत से डर गई है
या इंसानियत अब तेरी मर गई है
सरे आम लुटता है ईमान तेरा
हुआ खुद-गरज आज इंसान तेरा
कतल चोरी डाके औ जेबों का कटना
सरे राह बहिनों की इज्ज़त का लुटना
ज़हर कौन इस सरज़मीं बो गया है
मेरे शहर तुझको ये क्या हो गया है
-आर० सी० शर्मा “आरसी”
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