Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गुरु वंदना ......

 

 

गुरू जी तुम बिन कौन हितैषी मेरो ,
भव बंधन काट्यो है तब तें नित नित नयो सबेरो |

 

निसदिन मन भटकत है या ने पायो नहीं बसेरो,
जब तें गुरु चरनन में आयो यही लगे घर मेरो|

 

सुत ,दारा ,सम्पति सब ही हैं फिर भी दुःख घनेरो,
गुरु को परस भयो जा दिन तें ,तुरत भयो निरबेरो|

 

तृष्णा में उल्झ्यो मन हर दिन करत है तेरो मेरो,
गुरु प्रसाद पाये से मिट गयो अंतर्मन को अंधेरो|

 

पर उपकार करौ मन मेरे का तेरो कहा मेरो ,
सद्गुरु दीन दयाल भये से कछु ना बिगरै तेरो|

 


आर० सी ० शर्मा “आरसी ”

 

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