Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

गुज़र गया साल.............

 

गुज़र गया साल.............
मुठ्ठी के रेत सा
मस्तक के स्वेद सा
मन में कोइ भेद सा
छोड़ कर कितने ही अनुतरित सवाल
गुज़र गया साल
जाड़े की भोर सा
अनचाहे शोर सा
बिन बादल मोर सा
गीत बेसुरा और भटकी सुरताल
गुज़र गया साल
सूखे हुए ताल सा
उलझे हुए बाल सा
भूखे की लालसा
बुनकर अपने ही गिर्द मकडी का जाल
गुज़र गया साल
बच्चों के खेल सा
मेल भी बेमेल सा
पुल पर किसी रेल सा
चाय के प्याले में छोड़ अनगिनत उबाल
चुनावी निशान सा
गूंगे की तान सा
अपहृत विमान सा
नव सदी का हिरण और कछुए सी चाल
गुज़र गया साल |

 

 

--आर० सी० शर्मा ‘आरसी’

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ