Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

है अग्निपथ अभी अंगारों से स्नान बाकी है

 

 

है अग्निपथ अभी अंगारों से स्नान बाकी है,
तू अब फ़िर सोच कर फिर सोच ले मतदान बाकी है ।

 

ना फिर तुझको कुचल दें राजपथ पर रथ के वो पहिए,
मिटा ले हसरतें और दिल में जो अरमान बाकी हैं ।

 

सुलाया कब्र में तेरा कफ़न जिस-जिस ने लूटा है,
तेरे हाथों में उनकी मौत का फरमान बाकी है ।

 

यही वो तीर है भेदेगा इक दिन आँख मछली की,
प्रत्यंचा खींच कसकर हाथ में गर जान बाकी है ।

 

जिन्हें गणतंत्र की परिभाषा के माने नहीं आते,
इसी कागज़ की चिट्ठी में अभी संविधान बाकी है ।

 

वो आएंगे, मनाएंगे, रिझाकर नाक रगड़ेंगे,
मगर कह देना मुझ में "आरसी" अभी ज्ञान बाकी है ।

 

 

- आर० सी० शर्मा “आरसी”

 


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ