है अग्निपथ अभी अंगारों से स्नान बाकी है,
तू अब फ़िर सोच कर फिर सोच ले मतदान बाकी है ।
ना फिर तुझको कुचल दें राजपथ पर रथ के वो पहिए,
मिटा ले हसरतें और दिल में जो अरमान बाकी हैं ।
सुलाया कब्र में तेरा कफ़न जिस-जिस ने लूटा है,
तेरे हाथों में उनकी मौत का फरमान बाकी है ।
यही वो तीर है भेदेगा इक दिन आँख मछली की,
प्रत्यंचा खींच कसकर हाथ में गर जान बाकी है ।
जिन्हें गणतंत्र की परिभाषा के माने नहीं आते,
इसी कागज़ की चिट्ठी में अभी संविधान बाकी है ।
वो आएंगे, मनाएंगे, रिझाकर नाक रगड़ेंगे,
मगर कह देना मुझ में "आरसी" अभी ज्ञान बाकी है ।
- आर० सी० शर्मा “आरसी”
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY