Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जी करता है रोज़ सुनाऊँ, लिख दूं इतने सारे गीत

 

 

जी करता है रोज़ सुनाऊँ, लिख दूं इतने सारे गीत,
जीवन लहरों का कोलाहल, कितने शान्त किनारे गीत ।

 

अन्त नहीं, आरम्भ कहाँ है, ओर छोर भी कहीं नहीं,
दूर क्षितिज गन्तव्य तुम्हारा, कठिन सफ़र बंजारे गीत ।

 

दग्ध हृदय को शीतलता दें, शायद सम्बल बन जाएं,
आँसू पीकर मैं जो लिखता दर्दीले दुखियारे गीत ।

 

पलकों की कोरों पर आँसू, पढ़ते पढ़्ते मत लाना,
रक्त ह्रदय का देकर मैंनें, सींचे और संवारे गीत ।

 

संगी साथी, नाते रिश्ते, सब अपने जब छोड़ गए,
मुझको धीर बंधाते आए, बनते रहे सहारे गीत ।

 

पल पल मैं तो रहा गूंथता, याद तुम्हारी शब्दों में,
लेकिन तुमको सदा लगे है, और किसी के प्यारे गीत ।

 

जब राधा आकुल व्याकुल सी, श्याम पुकारे गलियन में,
अन्तर्तम तक भिगो गए हैं, मेघ श्याम कजरारे गीत ।

 

 

-आर सी शर्मा ’आरसी

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