जो सम्मानों के दावेदार निकले ,
वो दामन सारे दागी यार निकले |
मसीहा था जो कौमी एकता का ,
उसी के घर से कल हथियार निकले|
कसाई थे वो चारागर नहीं थे ,
सभी लाशों के ठेकेदार निकले|
नगर सेठों में जिनकी थी शुमारी,
अनैतिक उनके कारोबार निकले|
वो जिनकी कोठियां कोठे में बदलीं ,
वो नेताजी के रिश्तेदार निकले |
सरे महफ़िल सभी को आजमाया ,
फकत बस "आरसी"दमदार निकले|
--आर० सी० शर्मा "आरसी "
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