कभी इस बात का चर्चा हुआ क्या
मिला क्या और तुमने खो दिया क्या ।
ये दुश्मन इस कदर भरमा गया क्या
हमारी सरहदों तक आ गया क्या |
भरूं मैं आसमां बांहों में अपनी
मगर ये इस तरह बिखरा हुआ क्या |
सिवा नफरत परेशानी घुटन के
तुम्हारे साथ रहने से ,मिला क्या |
हज़ारों लोग मिलते हैं मिलेंगे
खबर देना कभी इंसां मिला क्या |
तुम्हारी बात का क्या है भरोसा
बता भी दो तुम्हारी है रजा क्या |
अभी तक चाहतें दिल में जवाँ हैं
मगर अब छोडिये भी ,फायदा क्या |
मनाने के लिए बैठे हुए हैं
बता दे अब तलक रूठा हुआ क्या |
तुम्हारा अक्स ही धुंधला रहा है
करेगा "आरसी" इसमें भला क्या |
--आर० सी० शर्मा “आरसी”
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