पत्नी से गुहार.........
तेरी मति तो गयी है मार , होरी पे पीहर मत जइयो ,
कछु सोच समझ के बिचार , होरी पे पीहर मत जइयो|
एक बरस को इंतज़ार कर होरी की रुत आई,
ऐसे में आ टपकौ जाने कहाँ से तेरो भाई
जाकूँ कैसे न कैसे तू टार , होरी पे पीहर मत जइयो |
मुनिया ,गुड्डो ,गोबिन्दा सब तेरी याद करिंगे ,
मम्मी घर पे नईं होगी तो गूजा हु नहीं बनिंगे|
उनकौ बिगर ना जाबे त्यौहार, होरी पे पीहर मत जइयो |
जब मलूक सी सुघर परौसिन होरी खेलन आबे,
हूक उठे मनुआ में भारी हाथ सुरसुरी खावें|
अपनौ बिगर न जाबे घरबार, होरी पे पीहर मत जइयो |
पत्नी बिना लगें होरी के सिबरे रंग ही फीके ,
हमकूं बासी टिक्कड़ उनकूं लडुआ देसी घी के |
कैसें काटिगे फागुन के दिन ये चार, होरी पे पीहर मत जइयो |
--आर ०सी० शर्मा “आरसी”
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