ये हृदय में कुछ भावों का अंकुरण हैं।
सरल इनकी भाषा, सरल व्याकरण है।
ये जप हैं, ये तप हैं, ये पूजा है मेरी,
ये मेरी तपस्या का लोकार्पण है।
ये शूलों पे ज्यूं फूल का आवरण हैं।
ये आकाश गंगा का भू अवतरण हैं।
अगर आप चाहें इन्हें गीत कह लें,
मेरी आत्मा, मेरा अन्त:करण है।
ये शबरी की भक्ति का रूपांतरण हैं।
ये लंका दहन हैं, ये सीता हरण हैं।
अटल हैं ये अंगद के एक पाँव जैसे,
ये पत्थर शिला का अहिल्याकरण हैं।
आषाढ़ों में आसोजी वातावरण हैं।
ये जन गण की पीड़ा का सरलीकरण हैं।
यों माने मेरे छन्द औ' मेरी ग़जलें,
ज्यूं मृत्यु का जीवन से पाणिग्रहण हैं।
मेरे शब्दों में ये तो जन जागरण हैं।
ये आत्मा के उत्सर्ग का स्फुरण हैं।
ये संवेदनाओं की सूखी शिरा में,
उबलते हुए रक्त का संचरण हैं।
ये मीरा के भजनों के नव संस्करण हैं।
ये कृष्ण और राधा का एकीकरण हैं।
ये पीड़ा है बनवासी राम और लखन की,
ये जीवन है मेरा, ये मेरा मरण हैं।
-आर० सी० शर्मा “आरसी”
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