Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुझको बेटी याद आती है

 

मेरे आंगन में आकर जब भी चिड़िया चहचहाती है,
मैं रो लेता हूँ मन में, मुझको बेटी याद आती है।

 

कभी इस शाख पर डेरा कभी उस शाख पर डेरा,
किसी भी शाख पर बैठे सदा ये गुनगुनाती है।

 

सफ़र की हो थकन या कोई दफ़्तर की परेशानी,
मैं सब-कुछ भूल जाता हूँ, वो जब भी मुस्कुराती है।

 

टकपते हैँ जब उसकी सीप जैसी आँख़ से मोती
विदा होते समय बेटी मुझे अक्सर रुलाती है।

 

अगर बेटी हो घर में रोज़ ही त्योहार है समझो,
हमेशा दो घरों के बीच में वह पुल बनाती है।

 

यही है “आरसी” दौलत, यही है इक अमानत भी,
बुज़ुर्गों की दुआ बनकर ही बेटी घर में आती है।

 


-आर० सी० शर्मा “आरसी”

 

 

 

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