Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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न जाने अब क्यूं मेरे साथ मेरा मन नहीं जाता

 

न जाने अब क्यूं मेरे साथ मेरा मन नहीं जाता
कि जैसे तुझ से मिलकर दिल का खालीपन नहीं जाता |

यूं सारी रात उनसे ख्वाब में बातें तो होतीं हैं
सुबह उठने पे लेकिन मन का भारीपन नहीं जाता |

रवायत है या आदत है अजब फ़ितरत है दुनियां की
जतन कितना भी कर लो इसका टेढापन नहीं जाता |

परायों ने नहीं ये दिल मेरा अपनों ने तोडा है
मगर नादानि-ए-दिल है कि अपनापन नहीं जाता |

अना ने साथ कब छोडा गो कितनी बार टूटा हूं
किसी के सामने फ़ैला के मैं दामन नहीं जाता |

कोई अच्छी जो शै देखी मचल उठता है पाने को
खुदाया ’आरसी ’ अब भी तेरा बचपन नहीं जाता |


-आर. सी. शर्मा “आरसी”

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