पिता, जब हम आठ साल के थे तभी नहीं रहे|कुछ धुंधलाई सी
स्मृतियां हैं उन्हीं को आपके समक्ष रख रहा हूँ पूज्य पिता को नमन करते हुए|
रहे सदा जीवनभर जग में, तुम मेरी पहचान पिता,
कहाँ चुका पातीं जीवनभर,इस ऋण को संतान पिता ।
चले तुम्हारी अंगुली थामे , हम पथरीली राहों पर,
बिना तुम्हारे वो सब रस्ते,रह जाते अनजान पिता ।
मेरे तुतलाते बोलों ने अर्थ तुम्हीं से पाया था,
मेरी बीमारी में अक्सर बन जाते लुकमान पिता ।
गुरु ,जनक, पालक,पोषक,रक्षक तुम भाग्यविधाता भी,
मोल तुम्हारा जान न पाए , हम ऐसे नादान पिता ।
अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम
सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा, हमसे यह एहसान पिता ।
तुम माँ के माथे की बिंदिया, और हमारा संबल थे,
बिना तुम्हारे माँ के संग हम, रो-रो कर हलकान पिता ।
जिनके कंधे चढ़ कर हम नें जग के मेले देखे थे,
अपने कांधे तुम्हें चढ़ा कर, छोड़ आये शमशान पिता ।
-आर.सी. शर्मा "आरसी"
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