रोज़ उम्र का नया रिसाला जब सूरज दे जाता,
मेरी संचित साँसों में से कुछ श्वासें ले जाता|
पुन: ठिठकते पाँव उठाकर जीवन चलने लगता ,
अमन- चैन ले जाता मेरा बैचेनी दे जाता|
ढह जाते हर रोज़ घरौंदे उन्हें संवारा करता हूँ|
मैं अतीत की ओर निहारा करता हूँ|
--आरसी
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