हज़ारों नहीं तुझको लाखों सलाम
मेरे देश फिर आना अब्दुल कलाम |
धरा ही नहीं ये गगन रो रहा है
माली सहित कुल चमन रो रहा है |
सभी को तुम्हारे ही जाने का गम है
हर आँख आंसू हर इक आँख नम है |
गिरा जैसे बरगद ज़मीं पर धडाम
मेरे देश फिर आना अब्दुल कलाम |
बाकी बचा कोई ओहदा नहीं था
कि जिसने तुम्हें खुद नवाज़ा नहीं था |
मगर इन सभी की नहीं चाह तुमको
गहरा समंदर जो प्यासा नहीं था |
जिंदादिली को तुम्हारी प्रणाम
मेरे देश फिर आना अब्दुल कलाम |
भारत के जितने मसाइल रहे हों
या पोखरण या मिसाइल रहे हों |
सदा भारती का ही गौरव बढाया
ज़ज्बा था सब जिस के कायल रहे हों
किया अंतरिक्षों में तुमने कयाम
मेरे देश फिर आना अब्दुल कलाम |
--आर० सी ० शर्मा “आरसी”
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