साहिलों ने हमें सूखी हुई नदी समझा;
हमको हर दौर ने गुजरी हुई सदी समझा।
बोझ एहसास का जब हमसे उठाते न बना;
बात इतनी थी ज़माने ने त्रासदी समझा।
फिर से वैदेही के विश्वास को वनवास मिला;
फिर प्रशासन के दु:शासन ने द्रौपदी समझा।
ग़म की मय ढलती रही उम्र के पैमाने में;
गोया किस किस की कहें सबने बेखुदी समझा।
यूँ तो हर चेहरे पे चस्पां थे इश्तिहार बहुत;
बात मुद्दे की "आरसी" सौ फीसदी समझा।
-आर.सी. शर्मा "आरसी"
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