उड़ानों को चलो आकाश फिर से हम नया देंगे
निराशा की ज़मीं पर हम नई आशा उगा देंगे ।
विगत को भूलकर आओ चलो आगत संवारें हम
ज़रा बाहें उठाओ तुम तो हम अम्बर झुका देंगे।दफ़न हो जाएंगे फिर भी मुरादें छोड़ जाएंगे
वसीयत करके भी कुछ तो फसादें छोड़ जाएंगे।
भुला देगा ज़माना कौन किसको याद करता है
मगर दिल में किसी के अपनी यादें छोड़ जाएंगे।फिरके ,मज़हब, जाति धर्म के परचम सभी उठाये निकले
ऐसा कोई नहीं मिला कि मुख से दर्द पराये निकले।
नहीं "आरसी" दर्पण बेचो यह अन्धों की बस्ती है
इंसानों की इस बस्ती में ज्यादातर चौपाये निकले।हमारा दिल तो कहता था कि बस दीदार हो जाए
इलाजे गम तो हो जाए ये दिल बीमार हो जाए |
चुरा लेते तुम्हारे गम, तुम्हारी आँख के आंसू
मगर अब क्या करें दरवाजा जब दीवार होजाए|कभी न ख़त्म होने की हैं ये दुश्वारियां अपनी
खुदा के सामने कब चल सकीं हुशियारियाँ अपनी|
सफ़र ऐसा भी होगा इक अकेले तय करेंगे हम
कि बस यूं ही धरी रह जाएँगी तैयारियां अपनी|कशिश कैसी है जाने क्यूं कलंदर डूब जाते हैं
यहाँ आने से पहले लाव-लश्कर डूब जाते हैं |
खुदा जाने असर कैसा बला का तेरी नज़रों में
तेरी आँखों में आके खुद समंदर डूब जाते हैं|लोग मेरे देश के अब ब्रह्मा विष्णु हो गए
भाट चारण थे सभी जो अ सहिष्णु हो गए।
पद्म सम्मानों की चाहत सबके दिल में थी तभी
अल सुबह सारे के सारे फिर सहिष्णु हो गए।बस दर्दों की जाई माँ,
कभी नहीं मुस्काई माँ|
अपनेपन का झरना है वो
लगती नहीं पराई माँ|मन भोला है मन चंचल है मन मनमानी करता है
पास नहीं जो, चाहत उसकी, खींचातानी करता है|
हम समझा कर हार गए पर उड़ जाता है पंख बिना
ज्ञान बहुत है फिर ये पगला क्यूं नादानी करता है|रुकते नहीं आँखों में कहाँ इनको सबर है
इस देश में क़ानून भी अब कितना लचर है।
सोया है पट्टी बाँध कर जो गहरी नींद में
माँ बाप के आंसू की भला किसको खबर है।रो पड़े मासूम कोइ यह न होना चाहिए
घाव बच्चों के हमें आंसू से धोना चाहिए|
स्वप्न आँखों में सलौने अधर पे मुस्कान हो
आने वाली नस्ल को ऐसा खिलौना चाहिएउगते सूरज को सब अर्ध्य चढ़ाते हैं
ढलते सूरज को न कभी प्रणाम किया।
चलन जमाने का हमसे ही बदलेगा
हम थे बस हमने ही यह काम किया।हमें तो दिल को समझाने की भी फुर्सत नहीं मिलती
घड़ी भर बैठ बतियाने की भी फुर्सत नहीं मिलती |
हमारे पंख भी बोझिल हुए परवाज़ भी मुश्किल
उधर बच्चों को घर आने की भी फुर्सत नहीं मिलती |मेरा ह्रदय नहीं बस मन का प्यार पढ़ लेना
यकीं अगर नहीं तो बार बार पढ़ लेना |
तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं हम आँखों में
मेरी आँखों को फकत एक बार पढ़ लेना |तुम्हारे पास जितना है उसे खोने नहीं देना
अभी जागे हैं आँखों में सपन सोने नहीं देना |
तुम्हारा मन तुम्हारे प्रेम की क्यारी है केसर की
कभी नफरत का पौधा अंकुरित होने नहीं देना |बीत गए सालों का देश को हिसाब चाहिए
अनछुए सवालों का अब हमें जवाब चाहिए।
पत्थरों से जिस्म होगए किस से कहें दर्द हम
बख्श दो हमें बख्श दो रूह को सबाब चाहिए।भारत रत्न अभूतपूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम साहेब श्रद्धा सुमन....
लाल था माँ भारती , आदम नहीं
शख्सियत ऐसी किसी से कम नहीं ।
इक फरिश्ता आज रुखसत हो गया
कौन सी वो आँख जो पुर नम नहीं ।-दर्द में डूबा हुआ है हर फसाना आजकल
मुस्कुराए हो गया इक ज़माना आजकल|
हम जला बैठे हवन में उंगलियाँ जिनके लिए
चाहते हैं वो ही हमको आजमाना आजकल|बात पहले क्यूँ न आई आपके संज्ञान में
कुछ गलतफहमी रही है आपके अनुमान में |
बेटियाँ ही जब न होंगी फिर बहू क्यूं कर मिले
ये नज़ारा आम है आज़ाद हिन्दुस्तान में|मुहब्बत में लिखी जो हर कहानी याद है मुझको
मगर नफरत ने कर दी तर्जुमानी याद है मुझको |
ये माना फासले ही फासले अब दरमियाँ अपने
है अब तक जो तुम्हें वो बदगुमानी याद है मुझको |सागर जितना गहरा होता
मन भी गूंगा बहरा होता ।
त्वरित उड़ानें भरने वाला
पल दो पल तो ठहरा होता।नज़र की हद पे जाकर बस निगाहें लौट आती हैं
किसी पर्वत से टकरा कर सदाएं लौट आती हैं |
हमारे घर के चारों ओर पहरा है बहारों का
मगर मेहमान बनकर क्यूं खिजाएँ लौट आती हैं|नित नूतन इतिहास लिखेंगे ,
हर मौसम मधुमास लिखेंगे |
विगत वर्ष जो रूठ गए हैं
फिरसे अपने पास लिखेंगे |मेरे गीत क्या हैं, ये हम जानते हैं,
ग़ज़ल में कहा है जो हम जानते हैं |
ये दोहे ये मुक्तक ये कुंडली, रुबाई
कहा दर्द कितना ये हम जानते हैं|ख्वाबों के अब वो नींद से रिश्ते नहीं रहे,
जागा हूँ सारी रात सुबह के कयास में|
यूं ही नहीं उठा ये धुंआ तुमको क्या खबर,
कुछ और भी जला है दिल के आस पास में|एक कतरा जब समंदर हो गया
देखिये कैसा बवंडर हो गया |
आस्था को छल रहा था झूंठ से ,
इक लुटेरा फिर कलंदर हो गया |-सदा उलझे से रहते हैं तुम्हारे स्याह से गेसू
हमें उलझन में रखते हैं तुम्हारे स्याह से गेसू |
यही लगता है दीवाना हमें अब करके छोड़ेंगे ,
निगाहों में महकते हैं तुम्हारे स्याह से गेसू |मुकद्दर में लिखा हो उससे ज्यादा ,कम नहीं मिलता
कहीं चाहत नहीं है और कहीं हमदम नहीं मिलता|
दिए हैं जिन्दगी ने चार पल वो प्यार से जी लो ,
ये तय है हर घड़ी तो प्यार का मौसम नहीं मिलता|जो विरासत में मिला तुमने वो घर बेच दिया
छाँव देता था मगर तुमने शज़र बेच दिया
आरज़ू और दुआ माँ की पिता का आशीष
तुमनें इन सारी दुआओं का असर बेच दिया।क्या गज़ब काम कर गया कोई
मुफ्त बदनाम कर गया कोई |
प्यार की सुबह होने वाली थी
प्यार की शाम कर गया कोई |आज तक मैं जान पाया बस यही एक भेद ना
तुम चुभन हो शूल की या फिर कोइ संवेदना |आओ मित्र बनाना सीखें
पहले प्रीत निभाना सीखें
रंग अनेकों इस दुनियाँ में
अच्छे चित्र बनाना सीखेंदर्द में डूबा हुआ है हर फ़साना आजकल
मुस्कुराए हो गया है इक ज़माना आजकल|
हम जला बैठे हवन में उंगलियाँ जिनके लिए
चाहते हैं वो ही हमको आजमाना आजकल |-जो सम्मानों के दावेदार निकले ,
वो दामन सारे दागी यार निकले |
नगर सेठों में जिनकी थी शुमारी,
अनैतिक उनके कारोबार निकले|कभी हंस दें कभी रो दें कभी माने कभी रूठें
कभी गिरते कभी उठते कभी कूदें कभी झूलें |
कभी अपने पराये का किसी से भेद ना रखते
जिया जाता है कैसे आज हम बच्चों से ही पूछें|लगता वो पढ़ गया है इन मेहंदियों का रंग
परवान चढ़ गया है इन मेहंदियों का रंग |
महकेगी हिना जाके अब किसके बाजुओं में
कुछ और बढ़ गया है इन मेहंदियों का रंग |तेरी बातों से पीर होती है
और तबीयत अधीर होती है
पूछले जाके गीले तकिये से
आँख क्यूं नीर नीर होती है।कहाँ मुझ से जुदा लगते हैं तेरी आँख के आंसू
वही सब कुछ बताते हैं जो मेरी आँख के आंसू|
जहां में दर्द सबको है मगर अय काश यूं भी हो
मेरी आँखों से छलकें गर जो तेरी आँख के आंसू|क्या बतलाऊँ पहले जैसी बात नहीं है सावन में
चूड़ी,पायल,कंगना की सौगात नहीं है सावन में|
सखी बताऊँ कैसे तुझको मुझपे कैसी गुज़री है ,
साजन भी परदेस गए हैं साथ नहीं हैं सावन में |तेरी बातों से पीर होती है
और तबीयत अधीर होती है
पूछले जाके गीले तकिये से
आँख क्यूं नीर नीर होती है।अपनी आँखों में इक समंदर है
आग सीने में दिल के अन्दर है
नाज़ इस दिल पे तुम नहीं करना
टूटना दिल का ही मुकद्दर है।अब इस जमीं को प्यार की सौगात चाहिये
थोड़ी नहीं कम भी नहीं इफरात चाहिये ।
सूखे हुए हैं होंठ और जलता हुआ बदन ,
भगवान रहम कर इसे बरसात चाहिये ।मैं तुम्हें भूल जाने की कोशिश में हूँ
तुम मुझे याद आने की जिद ना करो।
यूं तो सच्चा है पर थोड़ा कच्चा है मन
तुम इसे आजमाने की जिद ना करो।कोई कहता है रब का भजन ज़िंदगी
कोइ कहता है उसका सृजन ज़िंदगी |
हमने देखा था गुज़रे जो बाज़ार से
घूमती फिर रही निर्वसन ज़िंदगी |सूर्य उगता नहीं है गगन के लिए ,
फूल खिलता नहीं है चमन के लिए|
उसके होने न होने का क्या फायदा,
मिट न जाए जो अपने वतन के लिए |अगर मजबूर हो तुम तो हमें कब बेकरारी है,
निभे दोनों तरफ से सब कहें क्या खूब यारी है|
हमें प्यारा है वृन्दावन तुम्हें है द्वारिका नगरी,
तुम्हें तो कृष्ण हैं भाते हमें भी राधा प्यारी है|हम रात में उठ कर जो कमाने नहीं जाते
घर के थे जो हालात ठिकाने नहीं आते|
ये नींद और बिस्तर किसे प्यारा नहीं होता
पंछी भी कभी रात में दाने नहीं खाते |हम मन के तराजू में पहिले तौलते हैं रंग ,
शब्दों की चाशनी में अपने घोलते रंग |
गीतों का है अबीर तो ,ग़ज़लों कहै गुलाल ,
होली में बोली प्यार की ही बोलते हैं रंग |कल उन्हें देखा था हमने राह में आते हुए ,
यूं लगा कि जा रहे हैं हमसे कतराते हुए |
आने जाने में कटी जाती है यूं ही ज़िंदगी ,
मुस्कुरा कर काट लो या आँख बरसाते हुए |अश्क ढलते हैं जो आँखों से तो ढल जाने दे,
अपने सीने में जमी बर्फ पिघल जाने दे |
टूट पाएँगे न तूफानों से तटबंध कभी,
चंद लहरों का ये अरमान निकल जाने दे |वही रण बांकुरे हैं जो हवा को मोड़ देते हैं
अड़े चट्टान तो सीने से अपने तोड़ देते हैं|
परीक्षा धैर्य लेता है हो शत्रु सामने जब भी.
कायर लोग भय से बीच में रण छोड़ देते हैं|अभी तक खून में जो गर्मियां हैं ,
यही रिश्ते हमारे दरमियाँ हैं |
न कोई डर न कोई खौफ इनका ,
ये खूंटी पर टंगी कुछ वर्दियां हैं |चाँदनी भी मन को बहलाती कहाँ है
धूप खुलकर सामने आती कहाँ है|
इक कुहासा सा क्यूं मन पर छा गया,
धडकनें ठहरी सी हैं गाती कहाँ है |मन में कुछ भी न रखो कहने की आदत डालो ,
किसी दरिया की तरह बहने की आदत डालो |
ये तो दुनियां है यहाँ जख्म मिला करते हैं ,
"आरसी" दर्द को अब सहने की आदत डालो|सड़कों के हर चौराहे पर, पांचाली का चीर-हरण है,
वैदेही के निष्कासन की , जिम्मेदारी किसकी है |
रास्ता देखें बे-बस आँखें, पीठ से चिपकीं भूखी आंतें,
झूठे-सच्चे आश्वासन की, जिम्मेदारी किसकी है |अंधेरी रात हो हरदम ये ज़रूरी तो नहीं ,
सदा ही साथ हो हमदम ये ज़रूरी तो नहीं|
वक्त के साथ बदलना भी सीख जाना तुम ,
हर घड़ी एकसा मौसम ये ज़रूरी तो नहीं|-विरल संभावनाओं को चलो फिर से सघन कर लें ,
जो पल रूठे मनाने का उन्हें अंतिम जतन कर लें|
खुशी के पल जो पीड़ा में दबे हैं उत्खनन कर लें |
गरल हो या कि अमृत हो चलो हम आचमन करलें|
विगत को भूल आगत को चलो हम तुम नमन कर लें|दुनियां की मुश्किल से लड़ना सीख लिया ,
जीवन की पुस्तक को पढ़ना सीख लिया|
छोड़ गए वो माँ को निपट अकेला अब,
चिड़िया के बच्चों ने उड़ना सीख लिया |कबीले भाग जाते हैं कि जब सरदार मरता है,
हुनर भी साथ मर जाता है जब फ़नकार मरता है।
फ़क़त ज़िन्दादिली के साथ,सच्ची क़ौम हैजीती
कि मर जाता है इंसां उसका जब किरदार मरता है।वो आमादा थे उसको आज भी फांसी चढ़ा देते ,
अगर इस दौर में फिर से कोइ ईसा हुआ होतातेरे स्पर्श में बस माँ, हिमायत ही नज़र आई ,
तेरे चेहरे की हर झुर्री हमें आयत नज़र आई |दिल को गहरे ज़ख्म और आँखों में पानी दे गए ,
जाते जाते तुम हमें कैसी निशानी दे गए|
साथ में जब तुम नहीं तो हम सुनाएंगे किसे ,
दर्द के कागज़ पे लिख कर जो कहानी दे गए|गीत ऐसे लिख जो पलकों को भिगो दे ,
शब्द के नश्तर को सीने में चुभो दे |
भावनाओं से पराया गम बयां हो |
तू कलम को दर्द में इतना डुबो दे |मुहब्बत करने वालों की बस इतनी ही कहानी है ,
ये दिल टूटा हुआ है और वो रोती जवानी है|
कहीं शिकवे गिले हैं आह, आंसू और हैं सिसकी,
समंदर जैसी आँखों में वही खारा सा पानी है|हमसे ये दीदए पुर नम नहीं देखे जाते ,
गमज़दा दोस्त औ हमदम नहीं देखे जाते |
बढ़ चले जानिबे मंजिल तो ये डरना कैसा ?
राह में शोले या शबनम नहीं देखे जाते |कभी इसरार की, इज़हार की, इकरार की बातें,
ज़रूरी तो नहीं ग़ज़लों में केवल प्यार की बातें|
ग़मों को ओढ़ कर जो लोग हैं फूटपाथ पर सोते ,
उन्हें शेरो में शामिल कर, न कर रुखसार की बातें|धडकन कहाँ से लाओगे पत्थर के जिगर में ,
क्यूं बाँटते हो आईने अंधों के शहर में|ज़िंदगी कागज़ की कश्ती धीरे धीरे गल रही है,
टिमटिमाती लौ दिए की और बाती जल रही है|
सांस की बुनियाद पर है ये इमारत उम्र की ,
और तब तक ही खडी है सांस जब तक चल रही है|जनता के स्वप्न इस तरह साकार करेंगे,
साए में बैठ धूप का व्यापार करेंगे|
कोई मरीज होगा नहीं मेरे वतन में,
चारागरी का काम अब बीमार करेंगे |दर्द सीने में छुपा होठों पे लाता क्यों है
राज़ को राज़ ही रहने दे बताता क्यों है|
लोग कीचड़ में सने पाँव लेके आएँगे
अपने कमरे में ये कालीन बिछाता क्यों है|मुहब्बत करने वालों की बस इतनी ही कहानी है ,
ये दिल टूटा हुआ है और वो रोती जवानी है|
कहीं शिकवे गिले हैं आह, आंसू और हैं सिसकी,
समंदर जैसी आँखों में वही खारा सा पानी है|बना कर हाथ को तकिया वो अब फुटपाथ पे सोता ,
कभी जिस शख्स में गणतंत्र का उल्लास देखा था |
मिरी आँखें उजाला देख कर खुलने से कतरातीं,
इन्ही आँखों से मैनें भोर का विन्यास देखा था|माना कि हम छप ना पाए पुस्तक या अख़बारों में
लेकिन ये क्या कम है अपनी गिनती है खुद्दारों में |
हम वो पत्थर हैं जो गहरे गढ़े रहे बुनियादों में,
शायद तुमको नज़र न आए इसीलिए मीनारों में |वहशियों का ग्रास हो गईं ,लडकियां उदास हो गईं,
भेडियो की बस्तियां भी ,अब शहर के पास हो गईं|
अपने मन की किससे कहें ,कबतलक यूं घर में रहें,
सड़कें राजधानी की क्यूं गले की फांस हो गईं|हमने तो ज़िंदगी पे भरोसा बहुत किया,
पर दे गयी दगा हमें हरबार ज़िंदगी |
अब तो हमें ले आई है ऐसे मुकाम पर ,
जी तो रहे हैं पर लगे दुश्वार ज़िंदगी |आंसू भी मन की आग बुझाने नहीं आते,
दुःख- दर्द में भी दोस्त पुराने नहीं आते|
जब भी तुम्हारा जिक्र छिड़ा दिल ने ये कहा,
रिश्ते भी हर किसी को निभाने नहीं आते|मौन व्रत साध कर बैठे सम्वाद जब,
हमको रह रह के डसतीं हैं खामोशियाँ,
शब्द चुप हो गए, अर्थ गुम हो गए,
जैसे शापित हों आकुल सी अभिव्यक्तियाँ ।ज़ुल्मत-ए-शब से लड़ तू सहर के लिए,
स्याह घेरों से बाहर निकल ज़िन्दगी।
ख्वाब खण्डहर हुए तो नई शक्ल दे,
कर दे अब कुछ तो रददो-बदल ज़िन्दगी।गम इतना किसी से भी सम्भाला न जाएगा,
टालोगे तुम तो लाख ,ये टाला न जाएगा|
जिस दिन हमारी मौत का पैगाम मिलेगा ,
मुंह में तुम्हारे एक निवाला न जाएगा|हमें विश्वास देता है हमारी आस का सूरज,
सदा संत्रास देता है गलत विश्वासका सूरज|
जिन्हें विश्वास बाजू पर सदा ही कर्म करने में,
उनें मधुमास दे देता है, बारहों मास का सूरज|ये उजाला शहर में यूं ही नहीं आया है,
इन चिरागों में लहू हमनें भी जलाया है|है व्यथा की यह कथा ,गाथा नहीं अभिमान की ,
फिर कहानी लिख रहा है इक दिया तूफ़ान की |वो कहते हैं हद में रह ,
मन कहता है मद में रह|
उजड़ न जाए तिरा आशियाँ,
मन पंछी बरगद में रह |धमाकों से उभरता शोर ,ये चीखें बताती हैं ,
ज़रा शिद्दत से सोचो कुछ कहीं तो ख़ास टूटा है|
क़यामत पर न उनको माँ भी अपना दूध बख्शेगी
है उसकी बद्दुआ ,जिस कोख पर आकास टूटा है|-आंसू भी मन की आग बुझाने नहीं आते ,
दुःख दर्द में भी दोस्त पुराने नहीं आते|
जब जब तुम्हारा ज़िक्र हुआ,दिल ने ये कहा ,
रिश्ते भी हर किसी को निभाने नहीं आते|बनाई हैं जो तुमने उन हदों के पार जाना है ,
बंधे हैं पंख लेकिन सरहदों के पार जाना है|अपने बन्दों से कहाँ ,कब वो जुदा रहता है,
लोग कहते हैं अजानों में खुदा रहता है|वो मेरे सब्र को कुछ इस तरह से आजमाती है ,
लहर साहिल से टकरा कर के जैसे टूट जाती है|
मुझे कसमें दिलाती है किसी की बेरुखी अक्सर ,
जब उसकी याद आती है कसम भी टूट जाती है |कभी इसरार की, इज़हार की, इकरार की बातें ,
ज़रूरी तो नहीं ग़ज़लों में केवल प्यार की बातें|
ग़मों को ओढ़ कर जो लोग हैं फूटपाथ पर सोते ,
उन्हें शेरो में शामिल कर , न कर रुखसार की बातें|हम कबीर की कलम उठाके निकले स्वाभिमान से ,
छंदों की स्याही भर ली है लेकर के रसखान से|
हिन्दी लिक्खें , हिन्दी बोलें सदा सोच में हिन्दी हो ,
हिन्दुस्तान की उन्नति होगी ,हिंदी के उत्थान से |उदासी छाई हो तो खुशनुमा मंजर बनातीं हैं,
हमारी ज़िंदगी को और भी बेहतर बनातीं हैं|
अभागे हैं जो हरदम बेटियों को कोसते रहते,
अरे ये बेटियाँ ही हैं जो घर को घर बनाती हैं|
राज धानी पे था जो, भरोसा गया
हक हमारा था हमसे ही खौंसा गया|
मौत ,मातम पे अब ना सियासत करो ,
बालकों को ज़हर क्यूं परोसा गया|धुंआ चूल्हे से उठता फिर कोइ बस्ती नहीं जलती
हवा का रुख अगर थोड़ा सा भी बदला हुआ होता|
वो आमादा थे ,उसको आज भी फांसी चढ़ा देते ,
अगर इस दौर में फिर से कोइ ईसा हुआ होता |आंसू भी गम की आग बुझाने नहीं आते ,
दुःख दर्द में भी दोस्त पुराने नहीं आते|
जब जब तुम्हारा ज़िक्र
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