सितम भी खूब करता है,करम भी खूब करता है,
वो मुझको चाहता भी है ,वहम भी खूब करता है|
हथेली छील देता है मेरी मेंहदी लगाने में
सताता भी बहुत है पर रहम भी खूब करता है|
निजामत अब वतन की सौंप दी है उसके हाथोंमें,
बताता भी नहीं है और हज़म भी खूब करता है|
मुझे देता है अक्सर हौसला नाकामियों पर वो ,
मेरी लाचारियों को वो रकम भी खूब करता है|
न जाने कैसे कैसे काम करवाता है ये मुझसे ,
हमारा “आरसी” खाली शिकम भी खूब करता है|
--आर० सी शर्मा “आरसी ”
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