वो जो सत्ता-सुन्दरी की बांह में मदहोश हैं,
अब भला उनको कहाँ जन - भावना का होश है ?
काश ! आखें खोलकर वो देखते यह दुर्दशा,
या तो हम मज़बूर थे या यह व्यवस्था - दोष है ।
अँधे बहरे बन गए हों देश के जब रहनुमाँ,
किस जगह जाकर रुकेगा दोस्तो यह कारवाँ ?--आरसी
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