Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

यूं लगा दिन ज़िंदगी में शायराने आ गए

 

यूं लगा दिन ज़िंदगी में शायराने आ गए
अब गज़ल के काफिये हम को निभाने आ गए |

 

अब बड़े भाई को दादा कौन कहता है यहाँ
क्या बताएं यार अब कैसे ज़माने आ गए |

 

सांस बाक़ी जिस्म में थोड़ी हरारत शेष हैं
दोस्त मेरे देखिये कान्धा लगाने आ गए |

 

किस कदर बेताबियाँ थीं इश्क में हम क्या कहें
देखिये आंसू हमें भी अब छुपाने आ गए |

 

दिल परायों ने नहीं अपनों ने तोड़ा था मगर
देखिये नादानियां फिर दिल लगाने आ गए |

 

पाँव तो धंसने लगे हैं रेत में पर क्या करें
हम यहाँ बस सीपियाँ मोती उठाने आ गए |

 

आज तो यूं लग रहा है छत बचेगी या नहीं
देखिये तूफां की ज़द में आशियाने आ गये |

 

सिर फिरे हैं लोग सारे "आरसी" इस गाँव के
थान ले कर रेशमी किस को दिखाने आ गये |

 



--आर० सी० शर्मा “आरसी”

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ