यूं लगा दिन ज़िंदगी में शायराने आ गए
अब गज़ल के काफिये हम को निभाने आ गए |
अब बड़े भाई को दादा कौन कहता है यहाँ
क्या बताएं यार अब कैसे ज़माने आ गए |
सांस बाक़ी जिस्म में थोड़ी हरारत शेष हैं
दोस्त मेरे देखिये कान्धा लगाने आ गए |
किस कदर बेताबियाँ थीं इश्क में हम क्या कहें
देखिये आंसू हमें भी अब छुपाने आ गए |
दिल परायों ने नहीं अपनों ने तोड़ा था मगर
देखिये नादानियां फिर दिल लगाने आ गए |
पाँव तो धंसने लगे हैं रेत में पर क्या करें
हम यहाँ बस सीपियाँ मोती उठाने आ गए |
आज तो यूं लग रहा है छत बचेगी या नहीं
देखिये तूफां की ज़द में आशियाने आ गये |
सिर फिरे हैं लोग सारे "आरसी" इस गाँव के
थान ले कर रेशमी किस को दिखाने आ गये |
--आर० सी० शर्मा “आरसी”
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