Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ज़िंदगी रेत की एक नदी बन गई

 

R C Sharma Aarcee

 


ज़िंदगी रेत की एक नदी बन गई,
पाँव धंसते गए फिर भी चलते रहे,


दर्द की गोद में सो न पाए कभी ,
भोर की आस में आँख मलते रहे|


हाशिए पर लिखी इक अधूरी ग़ज़ल ,
हम तो बस काफिए जोड़ते रह गए|

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