R C Sharma Aarcee
ज़िंदगी रेत की एक नदी बन गई,
पाँव धंसते गए फिर भी चलते रहे,
दर्द की गोद में सो न पाए कभी ,
भोर की आस में आँख मलते रहे|
हाशिए पर लिखी इक अधूरी ग़ज़ल ,
हम तो बस काफिए जोड़ते रह गए|
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R C Sharma Aarcee
ज़िंदगी रेत की एक नदी बन गई,
पाँव धंसते गए फिर भी चलते रहे,
दर्द की गोद में सो न पाए कभी ,
भोर की आस में आँख मलते रहे|
हाशिए पर लिखी इक अधूरी ग़ज़ल ,
हम तो बस काफिए जोड़ते रह गए|
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