Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आ गया बसन्त

 
आ गया बसन्त
आ गया बसन्त प्रिये आ गया बसन्त ।
महक उठा सौरभ से आज दिग्दिगन्त ॥
प्रिये, आ गया बसन्त ॥
फूल गये वन उपवन मालती गुलाब ।
जाग उठे मन मधुवन नये नये भाव ।
सजे नवल स्वप्न हुआ संयम का अंत ॥
प्रिये, आ गया बसन्त ॥
अमराई में गूँजे कोयल की कूक ।
जाने कब उठ आयी अंतर में हूक ।
अनायास डोल गया आज हृदय सन्त ॥
प्रिये, आ गया बसन्त ॥
अंग अंग भेद रही पवन काम बाण ।
बहका तन महका मन दहक उठे प्राण ।
परिणय की अभिलाषा हुई मूर्तिमन्त ॥
प्रिये, आ गया बसन्त ॥
                 - डाॅ. राम वल्लभ आचार्य

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