अमर क्रान्ति दूतों को मेरा नमन
मुक्ति की चाह में, मृत्यु की राह में,
चल पड़े बाँधकर शीश पर जो कफन ।
राष्ट्र के उन सपूतों को मेरा नमन.!
उन अमर क्रान्ति दूतों को मेरा नमन.!
जाने कैसा जुनूँ था कि चढ़ता गया ।
ज्वार विद्रोह का था उमड़ता गया ।
क्रान्ति की आग उर में सुलगती रही,
ताप संताप का था कि बढ़ता गया ।
खून था खौलता, शक्ति को तौलता,
वज्र बनकर किया शत्रुओं का शमन ॥
राष्ट्र के उन सपूतों को मेरा नमन. ॥
जुल्म की बिजलियाँ थीं कड़कती रहीं ।
रण को आतुर भुजायें फड़कती रहीं ।
दासता की चुभन से विकल प्राण में,
मुक्ति की कामनायें धड़कती रहीं ।
लक्ष्य था दृष्टि में, कर्म था सृष्टि में ,
मृत्यु का कर गये हँसते-हँसते वरण ॥
राष्ट्र के उन सपूतों को मेरा नमन ॥
पथ न जिनका डिगा पाईं थीं गोलियाँ ।
बोलते थे जो जय हिन्द की बोलियाँ ।
खोलने दासता की चले बेड़ियाँ,
शौर्य साहस पराक्रम की ले टोलियाँ ।
गीत गाते चले, सर कटाते चले,
मुक्ति के यज्ञ में प्राण करते हवन ॥
राष्ट्र के उन सपूतों को मेरा नमन ॥
कामनायें रहीं जिनकी बन दासियाँ ।
रक्त से अपने लिखते रहे झाँसियाँ ।
प्राण लेके हथेली पे चलते रहे,
बाँचते शत्रुओं की उलट बाँसियाँ ।
बैरियों से लड़े, फाँसियों पर चढे़,
मुँद गये जिनके दृग मुक्ति का ले सपन ॥
राष्ट्र के उन सपूतों को मेरा नमन. ॥
- डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
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