दिन आ गये बसंत के
अनायास टूट गये संयम व्रत संत के ।
लगता है मादक दिन आ गये बसंत के ॥
वन उपवन सुमन खिले मधुकर गुंजार करें ।
मन्मथ के बाण बिंधे खग मृग अभिसार करें ।
प्रणय मंत्र उच्चारें चाकर हनुमन्त के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसन्त के ॥
खेतों में पियराई सरसों अब लहक उठी ।
विरहिन के अंतस में प्रिय की सुधि चहक उठी ।
शकुन्तला देख रही सपने दुष्यंत के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसंत के ॥
समीरण सुवासों के ओढ़कर दुकूल चली ।
अभिलाषा लाँघ सभी लाजों के कूल चली ।
मन चाहे आ जायें संदेसे कंत के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसंत के ॥
आमों की कुंजों में कोयलिया कूक उठी ।
सोये मन प्राणों में परिणय की हूक उठी ।
सप्तपदी बाँच रहे देव दिग्दिगन्त के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसन्त के ॥
- डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY