Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिन आ गये बसंत के

 


दिन आ गये बसंत के
अनायास टूट गये संयम व्रत संत के ।
लगता है मादक दिन आ गये बसंत के ॥
वन उपवन सुमन खिले मधुकर गुंजार करें ।
मन्मथ के बाण बिंधे खग मृग अभिसार करें ।
प्रणय मंत्र उच्चारें चाकर हनुमन्त के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसन्त के ॥
खेतों में पियराई सरसों अब लहक उठी ।
विरहिन के अंतस में प्रिय की सुधि चहक उठी ।
शकुन्तला देख रही सपने दुष्यंत के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसंत के ॥
समीरण सुवासों के ओढ़कर दुकूल चली ।
अभिलाषा लाँघ सभी लाजों के कूल चली ।
मन चाहे आ जायें  संदेसे कंत के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसंत के ॥
आमों की कुंजों में  कोयलिया कूक उठी ।
सोये मन प्राणों में परिणय की हूक उठी ।
सप्तपदी बाँच रहे देव दिग्दिगन्त के ॥
लगता है मादक दिन आ गये बसन्त के ॥
                        - डाॅ. राम वल्लभ आचार्य 





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