गोस्वामी तुलसी दास और चन्द्रमा का कालापन
पूर्णिमा को आकाश में पूर्ण चन्द्रमा सुशोभित होता है । चन्द्रमा का श्वेत धवल रूप अत्यंत मनोहारी होता है फिर भी उसमें जो काला सा धब्बा दिखाई देता है वह क्यों है ? यह प्रश्न चन्द्र दर्शन करने वाले हर मन मस्तिष्क में कौंधता ही है । वैज्ञानिकों ने इसका जो कारण बताया वह अपने स्थान पर है परन्तु गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में चन्द्रमा के इस कालेपन का विभिन्न रूपकों में बाँधकर सरस वर्णन किया है जो मनोमुग्धकारी है ।
प्रसंग लंका काण्ड का है । सागर सेतु पारकर श्री राम सैन्य सहित लंका द्वीप पर पहुँच चुके हैं । वे सुबेल पर्वत के एक ऊँचे, परम रमणीय और समतल स्थल पर ठहरे हुए हैं । रात्रि का समय है । भ्राता लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पुष्पों और पत्रों पर मृगछाला बिछाकर सुन्दर आसन बना दी गयी है जिस पर वानरराज सुग्रीव की गोद में सिर रखकर श्री राम चन्द्र जी विश्राम कर रहे हैं । युवराज अंगद और हनुमान उनके चरण दबा रहे हैं । पूर्व दिशा में उदित हुए चन्द्रमा पर उनकी दृष्टि पड़ी तो वे सबसे कहने लगे - चन्द्रमा को तो देखो । अत्यंत प्रताप, तेज और बल की राशि यह शेर के समान चन्द्रमा अन्धकार रूपी मतवाले हाथी को विदीर्ण कर आकाश रूपी वन में निर्भय होकर विचरण कर रहा है । आकाश में बिखरे हुए तारे मोतियों के समान हैं जो रात्रि रूपी सुन्दरी स्त्री के श्रंगार हैं ।
और उसके पश्चात् -
कह प्रभु ससि महुँ मेचकताई ।
कहहु काह निज निज मति भाई ।
अर्थात् - प्रभु ने कहा भाइयो ! चन्द्रमा में जो कालापन है वह क्या है ? अपनी अपनी बुद्धि अनुसार कहो ।
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई ।
ससि महुँ प्रगट भूमि के झाँई ।
अर्थात् -
सुग्रीव ने कहा - हे रघुनाथ जी सुनिये । चन्द्रमा में पृथ्वी की छाया दिखाई दे रही है ।
मारेहु राहु ससिहि कहि कोऊ ।
उर महुँ पड़ी स्यामता सोई ।
अर्थात् - किसी ने कहा चन्द्रमा को राहु ने मारा था । चोट का वही काला दाग हृदय पर पड़ा हुआ है ।
कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा ।
सार भाग ससि कर हर लीन्हा ।
छिद्र सो प्रगट इन्दु उर माहीं ।
तेहि मग देखिअ नभ परिछाहीं ।
अर्थात् - कोई कहता है जब ब्रह्मा ने रति ( कामदेव की स्त्री ) का मुख बनाया तब चन्द्रमा का सार भाग निकाल लिया ( जिससे रति का मुख तो परम सुन्दर बन गया परन्तु चन्द्रमा के हृदय में छेद हो गया ) । वही छेद चन्द्रमा के हृदय में वर्तमान है, जिसकी राह से आकाश की काली छाया उसमें दिखायी पड़ती है ।
प्रभु कह गरल बंधु ससि केरा ।
अति प्रिय निज उर दीन्ह बसेरा ।
बिष संजुत कर निकर पसारी ।
जारत बिरहवंत नर नारी ।
अर्थात् -
प्रभु राम जी ने कहा - विष चन्द्रमा का बहुत प्यारा भाई है । इसी से उसने विष को अपने हृदय में स्थान दे रखा है । विषयुक्त अपने किरण समूह को फैलाकर वह वियोगी नर नारियों को जलाता रहता है ।
कह हनुमंत सुनहु प्रभु, ससि तुम्हार प्रिय दास ।
तव मूरति विधु उर बसति, सोइ स्यामता गात ।
अर्थात् -
हनुमान जी ने कहा - हे प्रभो ! चन्द्रमा आपका प्रिय दास है । आपकी सुन्दर श्याम मूर्ति चन्द्रमा के हृदय में बसती है, उसी श्यामता की झलक चन्द्रमा में है ।
भक्त शिरोमणि हनुमान की प्रेमपगी वाणी सुनकर श्री राम चन्द्र जी मुस्कुरा दिये ।
प्रस्तुति - डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
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