गोविन्द भज
गोविन्द भज, गोविन्द भज
गोविन्द भज हे मूढ़ मन ।
अंतिम समय में काम आयेगा
अरे, प्रभु का भजन ॥
खेल में शैशव बिताया
फिर जवानी भोग में ।
और जब आया बुढ़ापा
घिर गया तू रोग में ।
अब बचा क्या पास तेरे
साँस का होता हवन ॥
गोविन्द भज हे मूढ़ मन ॥
गिर रहे हैं दाँत मुख से
नैन से दिखता नहीं ।
किंतु माया मोह में
उलझा हृदय हटता नहीं ।
बढ़ रही मन की तृषा,
है क्षीणता की ओर तन ॥
गोविन्द भज हे मूढ़ मन ॥
जब तलक हैं प्राण तन में
तब तलक यह प्रीत है ।
प्राण पंछी उड़ गया तो
कौन किसका मीत है ।
छूटता ऐश्वर्य जग का,
साथ जाता पुण्य धन ॥
गोविन्द भज हे मूढ़ मन ॥
जन्म फिर फिर से मिले
फिर मृत्यु भी फिर फिर मिले ।
गर्भ में फिर फिर शयन
यूँ चक्र जीवन का चले ।
कर्म शुभ कर, छूट जाएगा
अरे, भव का भ्रमण ॥
गोविन्द भज हे मूढ़ मन ॥
- डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
( श्रीमद् शंकराचार्य विरचित चर्पट पंजरिका स्तोत्र के सार का काव्यानुवाद )
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