ज्योति कुसुमों से सजी
बाँचती है हर किरण कवितावली ।
जगमगाती जगत में दीपावली ॥
स्नेह की बाती संजोयी सीप ने ।
जीत लिख दी है तमस पर दीप ने ।
गा रही है हर दिशा विरुदावली ॥
जगमगाती जगत में दीपावली ॥
हर दिशा में रश्मि निर्झर झर रहे ।
अब अँधेरे रोशनी को वर रहे ।
रच रही पुलकित पवन पुलकावली ॥
जगमगाती जगत में दीपावली ॥
अप्रतिम सब अवनि के श्रंगार हैं ।
दीप लड़ियाँ हैं कि हीरक हार हैं ।
ज्योति कुसुमों से सजी अलकावली ॥
जगमगाती जगत में दीपावली ॥
दिव्य यह आभा अमित अभिराम है ।
कौमुदी जैसे कि ललित ललाम है ।
लिख रहा है कौन यह कवितावली ॥
जगमगाती जगत में दीपावली ॥
- डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
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