Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कोरोना से सब बेहाल

 

कोरोना से सब बेहाल, पिचके हैं खुशियों के गाल
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मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक गीत गोष्ठी सम्पन्न
भोपाल । "कोरोना से सब बेहाल, पिचके हैं खुशियों के गाल" जैसी रचनाएँ पढ़कर प्रदेश के विभिन्न अंचलों के गीतकारों ने अपनी संवेदनाएँ व्यक्त कीं । अवसर था मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक गीत गोष्ठी का जिसका आयोजन ज़ूम के माध्यम से आन लाइन किया गया । गोष्ठी के मुख्य अतिथि मुरैना के वरिष्ठ गीतकार श्री भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ तथा सारस्वत अतिथि प्रसिद्ध वेदविद श्री प्रभुदयाल मिश्र थे । अध्यक्षता संघ के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने की । गोष्ठी में पं. राम प्रकाश अनुरागी ग्वालियर, डाॅ. सतीश चतुर्वेदी शाकुन्तल एवं श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ गुना, श्री वृन्दावन राय सरल सागर, श्री प्रभु त्रिवेदी इन्दौर, श्री मुकेश अनुरागी शिवपुरी, श्री देवेन्द्र तोमर मुरैना, जगदीश शर्मा सहज अशोक नगर, श्रीमती ममता बाजपेई, कमलकिशोर दुबे एवं कुमार चन्दन ने विभिन्न अनुभूतियों के गीत पढ़कर वाहवाही बटोरी, श्री राजेन्द्र गट्टानी के संयोजकत्व में आयोजित गोष्ठी का संचालन डाॅ. प्रीति प्रवीण खरे ने किया । गोष्ठी का रसास्वादन करने प्रदेश भर के गीतप्रेमी बड़ी संख्या में आयोजन से जुड़े रहे ।
किसने क्या पढ़ा -
श्री भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ -
गीत मेरे दुख सुख के साथी
फिर भी मुझको प्यारे हो ।
श्री प्रभु दयाल मिश्र -
मंत्र निष्फल निरर्थक हुए,
शब्द के अर्थ मेरे लिये ।
पं. राम प्रकाश अनुरागी -
बीत जायेंगे यों ही दिन बीत जायेंगे,
रोयेंगे कभी कभी गीत गायेंगे ।
श्रीमती ममता बाजपेई -
हर दुख गीत नहीं बन सकता,
कितना ही स्वर लय में गा लो ।
मुकेश अनुरागी -
जीवनधारा कुछ कुछ बाधित कितना अब ठहरें,
पल पल भय दोहित होता मन कैसे धैर्य धरें ।
वृन्दावन राय सरल -
कैसे गायें प्रीत के गान
दुख में जब हो हिन्दुस्तान ।
डाॅ. सतीश चतुर्वेदी शाकुन्तल -
खिलौना माँग रही छोटी,
मयस्सर हमें नहीं रोटी ।
श्री देवेन्द्र तोमर -
चाहे जो इल्जाम लगाओ चाहे जैसी सज़ा सुनाओ,
केवल मेरा दोष नहीं है तनिक तुम्हारी भी गल्ती है ।
श्री प्रभु त्रवेदी -
आओ मिलकर सब प्यार करें ।
श्री कमल किशोर दुबे -
जो गीता में कहा कृष्ण ने कहता वही कुरान,
हर मज़हब की सीख यही है श्रेएष्ठ बने इन्सान ।
श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ -
कोरोना वरदान बन गया ।
डाॅ. प्रीति प्रवीण खरे -
जीवन अपना हर्षित होता ।
प्यार यहीं पर सर्जित होता ।
जगदीश शर्मा सहज -
दुख अगर आदमी को सताता रहे,
मन सुमन की तरह मुस्कुराता रहे ।
कुमार चन्दन -
घोर सन्नाटा न घबरायें सँभलना सीख लें,
रास्ते अनजान हैं कसकर पकड़ना सीख लें । 

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— with DrPreeti Khare.


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