Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कुछ दोहे

 
कुछ दोहे
जेठ और बैशाख ने, 
खूब लगाई आग ।
ओ पावस के देवता,
अब तो निद्रा त्याग ॥
उतर गई है रोहिणी,
मगर न उतरा ताप ।
जब तक घन बरसें नहीं,
सहना है संताप ॥
प्यासे हैं बादल बहुत,
अभी पी रहे नीर ।
जब तक ये अतृप्त हैं,
धरना होगा धीर ॥
प्यासी सूखी धरा को,
है पावस की आस ।
जाने कब संदेस ले,
आयें मेघ खवास ॥
पावस आयेगा तभी,
हम प्यासों के गाँव. ।
जब भारी हो जायेंगे, 
हर बदली के पाँव. ॥
आयेंगी फिर बदलियाँ,
यहाँ  बुझाने प्यास ।
गौऎं संध्या लौटतीं, 
ज्यों बछड़ों के पास ॥
      - डा‌ॅ. राम वल्लभ आचार्य

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ