Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लक्ष्मी बाई हुंकार चली

 

जयंती पर विशेष -

लक्ष्मी बाई हुंकार चली
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रणचंडी बन समरांगण में
लक्ष्मी बाई हुंकार चली ।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।

झाँसी की गद्दी रिक्त हुई
जब स्वर्ग सिधारे गंगाधर ।
झाँसी का राज्य हड़पने का
अंग्रेजों ने पाया अवसर ।
आदेश दिया झाँसी सौंपो
पर रानी ने इंकार किया ।
तब फ़ौज फिरंगी ने आकर
झाँसी में नरसंहार किया ।
दूँगी न कभी अपनी झाँसी
लक्ष्मी बाई ललकार चली ।।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।

अंग्रेजों ने तो सोचा था
रानी तो अबला नारी है ।
वे नहीं जानते थे नारी
दुर्गा की सिंह सवारी है ।
लक्ष्मी बाई बचपन से ही
पारंगत थी रणकौशल में ।
वह शक्ति स्वरूपा दुर्गा थी
पुरुषों से भारी थी बल में ।
अपना सुत बाँध पीठ पर वह
फिर होकर अश्व सवार चली ।।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।

झाँसी की सेना के सम्मुख
थी अंग्रेज़ों की फ़ौज बड़ी ।
लेकिन झाँसी की सेना भी
साहस से उनके साथ लड़ी ।
लक्ष्मी बाई का रूप लिये
रण में लड़ती थी झलकारी ।
काना मँदरा सखियों ने भी
दुश्मन से युद्ध किया भारी ।
बिजली बन रानी टूट पड़ी
करती अरिदल पर वार चली ।।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।

लड़ते थे सैनिक आपस में
अरिदल का रक्त बहाते थे ।
निज मातृभूमि की रक्षा हित
अंतिम क्षण तक टकराते थे ।
थी दिशा दिशा गुंजायमान
टन-टन टन-टन टंकारों से ।
कट कट कर सिर गिरते भू पर
रानी के प्रबल प्रहारों से ।
करके दुश्मन के अंग भंग
वह बहा रक्त की धार चली ।।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।

रानी से लड़ने लेफ्टिनेंट
वोकर जब सम्मुख आया था ।
घायल कर लक्ष्मी बाई ने
रण भू से उसे भगाया था ।
करके अधिकार ग्वालियर पर
यमुना तट पर पहुँची रानी ।
थक कर के घोड़ा गिरा-मरा
आ गये तभी कुछ सैनानी ।
अविलम्ब भूमि से उठी और
करने उनका प्रतिकार चली ।।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।

फिर लेफ्टिनेंट स्मिथ आया
रानी पर उसने वार किया ।
रानी ने भी तलवार उठा
स्मिथ पर प्रबल प्रहार किया ।
वह भागा अपनी जान बचा
लेकिन ह्यूरोज वहाँ आया ।
उसने पीछे से वार किया
रानी ने काल घिरा पाया ।
मुँद गयीं वीरता की आँखें
रच देशभक्ति का ज्वार चली ।।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।

लक्ष्मी बाई की अमर कथा
सुन शीश स्वयं झुक जाता है ।
बल शौर्य पराक्रम साहस का
सागर मन में लहराता है ।
जो मातृभूमि की बलिवेदी
पर अपने शीश चढ़ाते हैं ।
जग उनकी गाथा गाता है
मरकर भी अमर कहाते हैं ।
लक्ष्मी बाई को कोटि नमन
जो कर हम पर उपकार चली ।।
झाँसी की रानी हाथों में
ले ढाल और तलवार चली ।।
          - डाॅ. राम वल्लभ आचार्य 


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