Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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*मैं तुम्हारी स्वर लता*

 

*मैं तुम्हारी स्वर लता*

प्रभु मैं तुम्हारी स्वर लता ।
आरोह में अवरोह में
हर साँस मेरी अनुगता ।।
प्रभु मैं तुम्हारी स्वर लता ।।

तुम ही षड़ज, तुम ही ऋषभ,
गंधार तुम, मध्यम तुम्हीं ।
धैवत तुम्हीं, हो निषाद तुम
हो सर्वथा पंचम तुम्हीं ।
हर स्वर तुम्हीं, हर ध्वनि तुम्हीं,
तुम ही स्वरों की मधुरता ।।
प्रभु मैं तुम्हारी स्वर लता ।।

अक्षर तुम्हीं, हर शब्द तुम
तुम वाक्य का विन्यास हो ।
कविता तुम्हीं, तुम छंद हो
रस का तुम्हीं आभास हो ।
हर गान तुम हर तान तुम
लय ताल की तुम सरसता ।।
प्रभु मैं तुम्हारी स्वर लता ।।

हर थाट तुम, हर राग तुम,
प्रभु हो तुम्हीं हर रागिनी ।
वीणा तुम्हीं, मादल तुम्हीं
तुम वंशिका बड़भागिनी ।
तुम धैर्य हो अभ्यास के,
तुम ही श्रवण की विकलता ।।
प्रभु मैं तुम्हारी स्वर लता ।।
        - डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
 

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