मन में रमण करो
राम तुम मन में रमण करो ।
रहो चित्त में सदा, सदा भावों में भ्रमण करो ।
राम तुम मन में रमण करो ॥
तन के रोम रोम में तुम, प्राणों में तुम्हीं बसे ।
बन के मोती साँसों की माला में तुम्हीं गसे ।
माया में भरमाया मनवा, दूर आवरण करो ॥
राम तुम मन में रमण करो ॥
जले इन्द्रियों की ज्वाला विषयों का हवन करूँ ।
होती प्रखर अग्नि कैसे तापों का शमन करूँ ।
करुणा का अमृत बरसाओ, प्रभु निज शरण करो ।
राम तुम मन में रमण करो ॥
काम क्रोध मद लोभ मोह के ठग चहुँ ओर खड़े ।
पापों की नित करूँ कमाई, मद अभिमान बढ़े ।
करूँ तुम्हारा ध्यान सदा मन में अवतरण करो ॥
राम तुम मन में रमण करो ॥
- डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
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