Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पेट की आग

 
न कलम लकड़ी है 
जिसे जलाकर
सुलगाया जा सकता है चूल्हा ।
न कागज़ तवा है
जिस पर
सेंकी जा सकती हैं रोटियाँ ।
न शब्द अन्न है
जिससे बनती हैं रोटियाँ ।
और न कविता रोटी है
जिससे बुझाई जा सके
पेट की आग ।

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