आदाब अहबाब पेश है मतला और एक शेर... दिन-रात, सुब्हो-शाम का मंजर उदास है,
जाने हयात तेरे बिना घर उदास है।
इक दिल तुम्हारा जीत के सब मैंने पा लिया,
दुनिया फतह भी कर के सिकंदर उदास है।
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आदाब अहबाब पेश है मतला और एक शेर... दिन-रात, सुब्हो-शाम का मंजर उदास है,
जाने हयात तेरे बिना घर उदास है।
इक दिल तुम्हारा जीत के सब मैंने पा लिया,
दुनिया फतह भी कर के सिकंदर उदास है।
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