Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन अपनों का सजाना तो है

 
जीवन अपनों का सजाना  तो है रेत में ही सही पर घर बनाना तो है  हाँ मालुम है  के तूफान का अन्देशा है मौजों में कश्ती फ़िर भी  बहाना तो है किस बात पे खुश है ये तूफानी लहरें नाखुदा को खुदा से ये जानना तो है 
भूख के आगे पलट जाते हैं हर एक तूफान इस बात का ख़ुद को यकीं दिलाना तो है 
हर  सीप में मोती मिलता नही दोस्तों सुना हमने  भी ये फ़साना  तो है 
समां गए कितने लहरों में उस रोज उजडे इस चमन को फ़िर से  बसाना तो है 
बहा न लेजएं सोनामी की लहरें फ़िर कहीं सुरक्षा चक्र  एक गाँव  में बनाना तो है 
भूखे रह जायें या सो जायें वो पीके पानी क़र्ज़ बनिए  का फ़िर भी चुकाना तो है दस्ताने गम क्या सुनाये तुम को रोज़ रोज़ अब आंसुओं  को तेरे हँसाना तो है  समुन्दर न सही समुन्दर सा हौसला तो दे ज़िन्दगी से रिश्ता हम को  निभाना तो है सब कुछ खो के बुत सा बैठा है वो घाव बन न जाए नासूर उस को रुलाना तो है 
जो गया उस का मातम कितने रोज़ बचे है जो उनको बचाना तो है -----------------------------------------
 

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