किस बात की तुम से हम गिला करते पत्थर भी है कहीं पिघला करते तुम ने ही न कहीं अपनी तकलीफे हमसे वरना हम दुआ करते असमान हिला देते सी लिए होठ बंद कर ली जुबान हमने के सुनते अगर दास्तान तो सब को हम रुला देते माँगा तो होता एक बार हमसे तुम को हम सारी कायनात ही दिला देते जाते जाते भी मुझको न दी आवाज़ तुमने शायद था इंतजार के हम ही सदा देते
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