Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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yahan kuchh youn yad aate hain barish ke din

 
उफ़ बारिश के ये दिन पानी में  कश्ती बहाने छपाक से दूसरो को भिगाने रेन कोट पहने के सुन्दर बहाने  छतरी लगा के इतराने के दिन उफ़ ये बारिश के दिन जब छत पर भीगा करते थे बूंदों के संग अठकेलियाँ  कर गीत नया गया करते थे माँ कि डांट कि भी कहाँ परवाह किया करतें थे वो बेफिक्री के दिन उफ़ ये बारिश के दिन बारिश कि पहली फुहार से उठती थी माटी कि खुशबु  पूरी गलियां महक उठतीं पत्ती पत्ती डाली डाली सजती मन में  बसी है आज भी वो खुशबु वो नरम गरम से दिन उफ़ वो बारिश के दिन रिमझिम फुहार के बाद ठेले पर भुट्टे भुनवाना भीगते हुए उनको खाना याद है आज भी वो सोंधा  स्वाद वो स्वादों के दिन उफ़ ये बारिश के दिन घिरते थे जो मेघ मन में  सोचा करते थे बरसे उमड़ घुमड़ इतना के आजाये सड़कों पर पानी इतना हो जाये रेनी दे बहुत दुआं यही  माँगा करते थे वो छुट्टी पाने के दिन  उफ़ वो बारिश के दिन रात में  बदल कि गड गड़ से जब हम बहने डर जाया करते थे पकड़ के एक दुसरे को माको बुलाया करते थे वो मान के संग सोने के दिन उफ़ ये बारिश दिन बारिश में जब चली जाती थी बिजली टटोलते टटोलते मचिश और मोमबत्ती ढूँढा करते थे फिर सारा घर इकठा होके उस पिली हलकी रौशनी में खाना खाया करते थे फिर फुर्सत के लम्हे पकड़ अन्ताक्छारी खेला करते थे वो अपने पन के दिन उफ़ ये बारिश के दिन न वो सोंधी खुशबु है न माँ का साथ न डर में  पकड़ने को बहन का हाथ बरखा में  भीगने का समय भी अब कहाँ है सब कुछ तो है यहाँ पर वो सुख कहाँ है फुर्सत के पल भी नहीं,बूंदों को पकड़ने कि तम्मना भी नहीं फिर भी है आज बारिश के दिन 


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