आज सुबह शहर के एक आधुनिक ग्वाले के दर्शन हुए। सड़क पर उसके आगे पाँच-छे गायें थीं, इधर-उधर सड़क पर बिखरे पोलिथीन बैग्स और दूसरा कचरा खाती हुईं। वह बाइक पर बैठे-बैठे उन्हें हांक रहा था—कभी हॉर्न बजाकर तो कभी मुंह से टिपिकल आवाजें निकालकर। गौ माता अपने मालिक के डांटने-डपटने, एक साथ सीधा चलने के आदेशों से परिचित सी लगती थीं। एक गाय जब BRTS TRACK पर चली गई तो उस ग्वाले ने दूर खड़े अपने दूसरे साथी को मोबाइल पर कुछ कहा।
मुझे ऋषिकेश मे हमारे घर के पास रहने वाले ग्वाले लक्ष्मी की याद आ गई। वह तड़के उठकर , चार-छे रोटी और कोई सुखी सब्जी पोटली में बांधकर , हाथ में छड़ी लेकर ,10-12 गायों को चराने के लिए दूर-दूर निकल पड़ता था। प्लास्टिक की एक बोतल में पानीऔर दूसरी में थोड़ा सा छाछ ले लेता था। वह शाम को थका-मांदा लौटता , टूटी-फूटी खाट पर गिर पड़ता । मैंने उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती देखी थीं।
गायें वही हैं पर ग्वाले बादल गए हैं।
कुछ दिन पहले हम सबने जन्मास्टमी मनाई थी। उस दिन थोड़ी देर के लिए मैं कल्पना-लोक मे खो गया था। मैंने देखा श्री कृष्ण आधुनिक ग्वाला बनकर गायें चराने निकले हैं। मैं उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। देखा उनके हाथ मे मुरली की जगह मोबाइल था। शायद उन्हें माँ यशोदा, भाई बलराम, प्रिय राधा और दूसरी गोपियों के संपर्क मे भी तो रहना था। उन्होने पीछे मुड़कर देखा। बोले—तुम?
हाँ प्रभु। मैं आपकी बनाई दुनियां का एक़ साधारण इंसान। मुझे आपसे कुछ बातें करनी हैं, कुछ सवाल पूछने हैं।
गायें चरती रहीं। एक छायादार पेड़ के नीचे बैठकर मैं अपने चिरसखा से बतियाता रहा। आज के जीवन और जगत के बारे मे बताता रहा—हे माधव, सारी धरती नफरत की आग मे जल रही है, धर्म के नाम पर हजारों- हजारों इन्सानों की लाशें बिछाई जा रही हैं, नारी के शारीरिक शोषण और खुलेआम अपमान की बातें तो जैसे आम हो गई हैं। मैं प्रभु को विस्तार से देश-विदेश मे हो रहे अत्याचार, अन्याय और पाप की घटनाएँ बताने लगा। उन्हें याद दिलाया- हे सुदर्शन-चक्रधारी, तुमने भरी सभा मे द्रोपदी की लाज बचाई , कंस का वध कर धरती को उसके अत्याचारों से मुक्त किया। मैने प्रभु को उलाहना देते हुए पूछा- क्या आज अधर्म और पाप का फैलता हुआ अंधेरा आपको विचलित नहीं करता? क्या आप गीता मे अर्जुन को दिये अपने वचन को भूल गए—यदा-यदा हि धर्मस्य ...
श्रीकृष्ण ने मुझे रोकते हुए टोका—बेटे, तुम अखबार और टी॰वी के नेगेटिव न्यूज़ पर ही ज्यादा ध्यान देते हो। अपने आस-पास बिखरे अच्छाई के प्रकाश को नहीं देखते। क्यों नहीं बताते मुझे अहमदाबाद के उस ऑटोरीक्षा वाले के बारे मे जिसने गर्मी,सर्दी, बरसात की परवाह किए बिना रात-दिन रिक्शा चलाकर अपने बेटे को सी॰ए॰ बनाया? क्यों नहीं बताते सूरत के उस गरीब लड़के के बारे मे जिसने अपने प्लेग्राउंड पर खेलते हुए मिले लाखों रुपयों के हीरे उसके मालिक तक पहुंचाए? क्यों नहीं बताते मुझे नवसारी के उस मुस्लिम व्यापारी के बारे मे जिसने अपने घर पर हाल ही मे भागवत का पाठ करवाया ? कितनी कम चर्चा होती है इन बातों की आज के समाज मे? प्रभु बोलते रहे—ख़ैर मैं सब जानता हूँ, बेटे। विश्वास करो, रात जितनी ही संगीन होगी,सुबह उतनी ही रंगीन होगी। मैं आऊँगा, जल्दी ही आऊँगा। किसी दिन एक साधारण मनुष्य के रूप मे तुम्हारे साथ आ खड़ा हूंगा और ॰
और मैंने देखा श्रीकृष्ण सचमुच खड़े हो गए थे । उनकी उंगली मे सुदर्शन चक्र था। उन्होने अपना दिव्य रूप धारण कर लिया था। मेरे सिर पर आशीष भरा हाथ रखकर बोले—बेटे, अब अपने घर जाओ। तुम्हारी पत्नी चिंता करती होगी।
मैं उठा, धीरे-धीरे अपने घर की तरफ चलने लगा। पीछे मुड़कर देखा तो प्रभु फिर से ग्वाले के वेश मे आ गए थे—गायों को चराते हुए, मोबाइल पर किसी से बातें करते हुए...
किससे ? क्या बातें ?
मैं क्या जानू ?
यह लिखने के बाद, फ़ेसबुक पर पोस्ट करने से पहले, आज सुबह ही टाइम्स ऑफ इंडिया के फ़र्स्ट पेज पर पढ़ा –BABA BEHIND THE BARS...मुझे लगा मेरे प्रभु लौट आयें हैं पंचकुला के उस सी॰बी आई के स्पेशल कोर्ट के जज के रूप मे जिसने उस पापी संत को अपने डेरे मे रहने वाली एक साध्वी के शारीरिक शोषण का दोषी घोषित किया । सोमवार को उसे सजा सुनाई जाएगी। मुझे लगा मेरे कृष्ण दिल्ली मे डी।टीसी बस के उस ड्राईवर के रूप मे आए हैं जिसने हिंसा पर उतारू बाबा के अंध भक्तों से 150 से भी ज्यादा अपनी बस के passengers की जान बचाई ।
मेरा विश्वास और पक्का हो गया—सच हमेशा जीतता है। कोई भी रात सुबह को आने से नहीं रोक सकती।
Radhakrishna Arora
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