Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कोहरे के पीछे

 

अपनी नंगी बाहें आसमान की तरफ फैलाए
क्या मांगता है खुदा से वह ठूँट
वो पतझड़ का मारा
सूखा पेड़ ?
चुपचाप चींखता है शायद
लौटा दो मुझको
मेरे पते, मेरे फूल ,मेरे फल
मेरे नंगे जिस्म को ओढ़ा दो
बसंत के कपड़े



Radhakrishna Arora

 

 

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